नींद की कमी से बच्चे हो रहे हैं कई स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार

नींद की कमी से बच्चे हो रहे हैं कई स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार

सेहतराग टीम

सेहत के लिए बेड रेस्ट यानी की सोना काफी जरुरी होता है। अगर हम रोजाना अच्छी नींद लेते है तो हमारा शरीर काफी फिट रहता है और दिमाग भी तरोताजा बना रहता है। इसलिए तो डॉक्टर भी कहते है कि रोजाना पर्याप्त मात्रा में नींद लेना काफी जरुरी होता है। वहीं एक कहावत भी है कि स्लीप लाइक ए बेबी जो आज के समय में सिर्फ कहावत ही बन कर रह गई है। क्योंकि आज के समय में लोग पैसे कमाने के चक्कर में लाइफ इंज्वाय करना भूल गए हैं। इस वजह से वह पर्याप्त मात्रा में नींद भी नहीं ले पाते है। यही कारण है कि अधिकतर लोग बीमार रहते हैं और दवाइयों के दम पर लाइफ जीते हैं। वहीं आपको बता दे कि यह समस्या सिर्फ वयस्को में ही नहीं है बल्कि यह समस्या आज कल के बच्चों में देखने को मिलता है। अक्सर बच्चे कंप्यूटर औऱ फोन पर अपना समय ज्यादा बिताते हैं जिस वजह से वह अपनी नींद नहीं पूरी कर पाते है।

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वैसे बच्चों को 24 घंटों में कम से कम 10 से लेकर 11 घंटों की नींद लेनी चाहिए। अगर बच्चे इतनी नींद नहीं लेते है तो वह शारीरिक बीमार होने के साथ-साथ मानसिक रोगी भी हो सकते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए बच्चों को पूरी नींद लेनी आवश्यक है। नींद अगर पूरी नहीं हुई है तो बच्चों के अंदर कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होती है,जो आगे चल कर काफी हानि पहुंचाती हैं। तो आइए जानते है कि इस विषय में आखिर डॉक्टरों का क्या कहना है और नींद न पूरी होने की वजह से कौन-कौन सी समस्या उत्पन्न होती है यह भी जानने की कोशिश करेंगें।

व्यवहार संबंधी समस्याएँ

नींद की कमी का असर बच्‍चे के व्‍यवहार में भी दिखता है। जैसे- हाइपर होना, साथियों के प्रति आक्रामक होना, गुस्‍से को न रोक पाना और मनोदशा में बदलाव। यह बुनियादी मुद्दे ऐसी समस्याएं हैं, जिनका सामना युवा दिमाग को नहीं करना चाहिए। नींद की कमी बच्चे को चिड़चिड़ा बना सकती है, जो उन्हें विनाशकारी और नुकसानदेह गतिविधियों को करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

सोचन समझने की क्षमता पर असर 

जबकि नई चीजें सीखने के लिए आपके पास कई रास्ते हैं, उसमें नींद भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नींद की कमी हमेशा एक व्यक्ति को विचलित, असावधान और समस्या को सुलझाने में असमर्थ बनाती है। इसके कारण, बच्‍चे सीखने और प्रगति नहीं कर सकते हैं, यह विशेष रूप से सभी के साथ कठिन होगा। जिससे वे अपने शैक्षणिक आकलन में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएंगे। 

बच्‍चों में स्लीप एपनिया

नींद से जुड़ी सबसे आम स्वास्थ्य समस्‍याओं में है बच्‍चों में स्लीप एपनिया है। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) सबसे प्रचलित रूप है, जो मूल रूप से सोते समय वायुमार्ग को अवरुद्ध करता है। जिसके परिणामस्वरूप वायुप्रवाह अवरुद्ध होता है। यदि बच्चा मोटा है, तो ऊपरी वायुमार्ग पर दबाव पड़ता, जिससे कि उनकी नींद पर प्रभाव पड़ता है। ब्रेस्‍टफीडि़ग ऊपरी वायुमार्ग की डिस्‍फ्यूजन से बचाता है, जो स्‍लीप डिसऑर्डर ब्रीदिंग का कारण बनता है। निरंतर रूप से ब्रेस्‍टफीडि़ग के साथ यह जोखिम कम हो जाता है और इसलिए यह भी एक कारण है कि नवजात शिशुओं को कम से कम छह महीने तक ब्रेस्‍टफीडि़ग कराने की सलाह दी जाती है।

बच्‍चों में स्लीप एपनिया को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए और इसका इलाज करवाना चाहिए। क्‍योंकि यह हृदय से संबंधित गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों को जन्म दे सकता है- विशेष रूप से मोटे बच्चों और व्यवहार की समस्याओं में।

मोटापा

बच्चों में नींद की कमी के लिए मोटापा एक और सामान्य विशेषता है। जबकि यह हमेशा समझा जाता था कि ओवरस्‍लीपिंग और शारीरिक गतिविधि की कमी मोटापे का कारण बनता है। जबकि, जब आप पर्याप्त नींद नहीं ले रहे होते हैं, तो यह भी आपके मोटापे को जन्‍म देता है। ऐसे में आपके शरीर के हार्मोन में परिवर्तन होता है और यह शरीर के विभिन्न कार्यों को प्रभावित करता है। इसमें विशेष रूप से भूख पर असर दिखता है, जो किसी को अस्वास्थ्यकर कैलोरी से भरपूर भोजन को बिना सोचे समझे खाने की ओर ले जाता है। इसके परिणामस्वरूप मोटापा होता है और इस मोटापे के कई दुष्‍प्रभाव हैं, जैसे- हृदय से संबंधित समस्याएं, डायबिटीज आदि। नींद की कमी से चीजें बदतर हो सकती हैं। 

बच्चे को नींद में मुश्किल क्‍यों होती है?

वयस्कों के विपरीत, बच्चों के पास सबसे सुखद चरण होता है, उनके जीवन का आनंद लेने के लिए बचपन और दुनिया को प्रभावित करने वाले तनाव और चिंताओं के साथ नहीं। लेकिन उनके जीवन में और बहुत सारी बाहरी गतिविधियाँ, जो उन्हें व्यस्त की तरह रखती हैं। जिससे कि बच्चे आसानी से सो नहीं सकते हैं। 

गैजेट का समय बढ़ा दिया

बच्चे बाहरी गतिविधियों में खुद को उलझाकर अपनी अधिकांश ऊर्जाओं को प्रसारित करते हैं। इससे उन्हें कुछ खेल में खुशी मिलेगी और शारीरिक व्यायाम को भी बढ़ावा मिलेगा। हालाँकि, आज की पीढ़ी इस मस्ती से रहित है। यह अधिकतम समय के कारण हो सकता है कि बच्चे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों सहित मोबाइल फोन, टैबलेट और अन्य उपकरणों के साथ बिताते हैं या तो ऑनलाइन गेम खेल रहे होते हैं या फिर सोशल मीडिया में भाग ले रहे होते हैं। गैजेट्स के अधिक उपयोग के कारण नींद की कमी के कारण सिरदर्द और नजर का कम होना जैसी समस्‍या होती हैं। यही कारण है कि आज ज्‍यादातर बच्‍चों की आंखों में चश्मा है। 

शुगरी और जंक फूड खाना

सोने से ठीक पहले विशेष रूप से मिठाई खाने से शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ जाएगी और नींद के पैटर्न में बाधा उत्पन्न होगी। शुगर शरीर में ग्लूकोज को सक्रिय करता है और बच्चा हाइपरएक्टिव हो जाता है। बच्चों को जल्दी रात का खाना खिलाना और रात में मिठाई देने पर रोक लगाना एक अच्छा विचार है। खासकर सप्ताह के दिनों में जब उन्हें अगले दिन स्कूल जाना होता है।

माता-पिता के लिए टिप्स

  • माता-पिता को यह निगरानी करनी चाहिए कि बच्चा रोजाना कम से कम 10 घंटे सोता है। 
  • बच्‍चों में एक यही अनुशासन की आदत बनाएं, ताकि वह समय से खाना और सोना कर सकें। यदि ऐसा किया जाए, तो बच्चों में नींद न आने की समस्या को हल करने में मदद मिल सकती है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स बंद करें यानि बच्‍चे के सोने से ठीक पहले गैजेट्स / टैब / गेम्स से बचें।

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